बीकानेर, 22 जुलाई 2025
राजस्थान में चल रही न्यायिक कर्मचारियों की हड़ताल को लेकर महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में कार्यरत संस्था अनामिका (महिला अस्तित्व जागृति) फाउंडेशन ने अपना समर्थन जताया है। फाउंडेशन ने मांग की है कि न्यायिक तंत्र को अत्यावश्यक सेवा घोषित किया जाए ताकि न्याय प्रणाली में बाधाएं कम हों और आम नागरिकों को न्याय सुलभ हो सके।
फाउंडेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मंजु गुप्ता ने प्रेस बयान में कहा कि न्यायिक तंत्र के आधार स्तंभ माने जाने वाले लिपिकीय और सहायक कर्मचारी लंबे समय से उपेक्षा और असमानता का सामना कर रहे हैं। समयबद्ध पदोन्नति, समान कार्य के लिए समान वेतन, गरिमामय कार्यस्थल और मूलभूत सुविधाएं उनकी मांगें नहीं, बल्कि संस्थागत मर्यादा की न्यूनतम अपेक्षाएं हैं।
डॉ. गुप्ता के अनुसार यह हड़ताल केवल वेतन या सेवा शर्तों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह न्यायिक व्यवस्था को अधिक न्यायसंगत, प्रभावी और जनोन्मुखी बनाने की चेतना से प्रेरित है। उन्होंने आंदोलनरत कर्मचारियों से आग्रह किया कि वे आमजन से संवाद स्थापित करें ताकि उनके संघर्ष को जनसमर्थन मिल सके। उन्होंने कहा कि जब कर्मचारी समाज से जुड़ते हैं और अपनी स्थिति साझा करते हैं, तो जनता भी उनके संघर्ष को अपना समझती है।
उन्होंने यह भी अपील की कि कर्मचारी हड़ताल के दौरान ऐसे संवेदनशील मामलों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाएं, जिनमें अंतरिम ज़मानत, पारिवारिक विवाद, महिला उत्पीड़न जैसे विषय शामिल हैं। फाउंडेशन ने सुझाव दिया कि सरकार को शीघ्र रिक्त पदों की पूर्ति करनी चाहिए, न्यायालयों में आवश्यक स्टाफ की नियुक्ति करनी चाहिए और डिजिटल अपडेट व सेवा गारंटी प्रणाली को लागू करना चाहिए।
डॉ. गुप्ता ने कहा कि संवादहीनता ही ऐसे आंदोलनों की जड़ होती है। यदि सरकार समय रहते न्यायिक कर्मचारियों की समस्याओं को सुने और ठोस समाधान निकाले, तो हड़ताल जैसी स्थिति से बचा जा सकता है।
उन्होंने जोर दिया कि न्याय केवल एक निर्णय प्रक्रिया नहीं, बल्कि नागरिक और राज्य के बीच विश्वास की डोर है। यदि कर्मचारियों की समस्याएं हल होती हैं, तो आमजन को भी समयबद्ध और पारदर्शी न्याय मिल सकेगा।
डॉ. मंजु गुप्ता ने कर्मचारियों से अपील की कि वे आंदोलन को केवल प्रशासनिक दबाव बनाने का माध्यम न बनाएं, बल्कि जनसरोकार से जोड़कर उसे व्यापक सामाजिक मुद्दा बनाएं। उन्होंने कहा कि जब तक आम नागरिक यह नहीं समझेंगे कि न्यायिक कर्मचारियों के काम का सीधा संबंध उनके न्याय प्राप्ति के अधिकार से है, तब तक यह आंदोलन जनता की नजर में केवल असुविधा के रूप में देखा जाएगा।
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि पक्षकारों को विनम्रता से यह बताया जाए कि यह आंदोलन केवल कर्मचारियों का नहीं, बल्कि समाज के हर उस व्यक्ति का है जो समयबद्ध और पारदर्शी न्याय की उम्मीद करता है। यदि कर्मचारी आमजन को साथ लें, तो यह आंदोलन केवल वेतन या सुविधाओं की नहीं, बल्कि न्याय तक आसान और समयबद्ध पहुंच की साझा मांग बन जाएगा।
समापन में डॉ. गुप्ता ने कहा कि कर्मचारी केवल आंदोलन करें यह पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन्हें जनता का विश्वास भी जीतना होगा। न्यायिक कर्मचारी न्यायिक प्रक्रिया की रीढ़ हैं, और जब वे जनसरोकार से जुड़ते हैं, तभी दीर्घकालिक और स्थायी समाधान की दिशा में ठोस पहल संभव हो पाती है।