राजस्थान में न्यायिक कर्मचारियों की हड़ताल के परिप्रेक्ष्य में महिला सशक्तिकरण व सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध संस्था अनामिका (महिला अस्तित्व जागृति) फाउंडेशन ने कर्मचारियों की मांगों का समर्थन करते हुए न्यायिक तंत्र को “अत्यावश्यक सेवा” घोषित करने की माँग की है।
फाउंडेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मंजु गुप्ता ने प्रेस वक्तव्य में कहा कि “न्यायिक तंत्र के आधार स्तंभ— लिपिकीय और सहायक कर्मचारी — वर्षों से उपेक्षा और असमानता का सामना कर रहे हैं। समयबद्ध पदोन्नति, समान कार्य-समान वेतन, कार्यस्थलों पर गरिमा और सुविधाएँ — ये केवल माँगें नहीं, बल्कि एक न्यूनतम संस्थागत मर्यादा की अपेक्षाएँ हैं।”
अनामिका फाउंडेशन ने स्पष्ट किया कि यह हड़ताल केवल वेतन या सेवा शर्तों का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह उस “भीतरी चेतना” का संकेत है जो न्यायिक संस्थानों को अधिक सक्षम, न्यायसंगत और सशक्त बनाने की माँग करती है।
फाउंडेशन ने आंदोलनकारी कर्मचारियों से आग्रह किया कि वे आम नागरिकों से संवाद बनाएं, जिससे उनकी लड़ाई को जनता का नैतिक समर्थन प्राप्त हो सके। डॉ. गुप्ता ने कहा “जब कर्मचारी जनता के साथ जुड़ते हैं, उनकी पीड़ा को साझा करते हैं, तो जनता भी उनके संघर्ष को अपना समझती है। यह आवश्यक है कि कर्मचारी आमजन को केवल सेवा-प्राप्तकर्ता नहीं, बल्कि अपने संघर्ष के साथी के रूप में देखें।”
उन्होंने न्यायिक कर्मचारियों से यह भी अपील की कि “अंतरिम ज़मानत, पारिवारिक विवादों की सुनवाई, महिला-संबंधी उत्पीड़न मामलों की देरी जैसी संवेदनशील स्थितियों को ध्यान में रखते हुए, मानवीय दृष्टिकोण बनाए रखें।”
अनामिका (महिला अस्तित्व जागृति) फाउंडेशन की माँग है कि अदालतों में पर्याप्त संख्या में न्यायिक अधिकारी व सहायक कर्मचारी नियुक्त किए जाएँ, रिक्त पदों की शीघ्र पूर्ति हो, डिजिटल अपडेट व सेवा गारंटी प्रणाली लागू हो और न्यायिक सेवा को “अत्यावश्यक सेवा” (Essential Service) की श्रेणी में रखा जाए।
अनामिका (महिला अस्तित्व जागृति) फाउंडेशन का मत है कि “हड़तालें तभी जन्म लेती हैं जब संवेदनशील विभागों में संवाद का अभाव होता है। सरकार को न्यायिक कर्मचारियों की बात ध्यानपूर्वक सुननी चाहिए और दीर्घकालिक समाधान की पहल करनी चाहिए।”
डॉ. मंजु गुप्ता ने कहा कि “न्याय केवल एक निर्णय प्रक्रिया नहीं है, वह एक भरोसा है — एक नागरिक और राज्य के बीच। न्यायिक कर्मचारियों की समस्याओं को दूर कर हम न केवल उनके अधिकारों को सशक्त करेंगे, बल्कि आमजन को समयबद्ध सुलभ न्याय देने की व्यवस्था बना सकेंगे।”
डॉ. मंजु ने कहा कि न्यायिक कर्मचारी अपने आंदोलन को केवल प्रशासन तक सीमित न रखें, बल्कि जनसंपर्क बढ़ाकर आमजन को भी अपने संघर्ष का सहभागी बनाएं।
उन्होंने कहा, “जब तक आमजन यह नहीं समझेंगे कि न्यायिक कर्मचारियों के कार्य का सीधा संबंध उनके न्याय प्राप्ति के अधिकार से है, तब तक यह आंदोलन जनता की नज़र में केवल ‘काम बंद’ जैसी असुविधा बना रहेगा।”
न्यायालय आने वाले पक्षकारों को विनम्र रूप से अवगत कराएं कि यह आंदोलन केवल उनका अधिकार नहीं, बल्कि आम नागरिक के त्वरित व पारदर्शी न्याय के अधिकार को भी सुनिश्चित करने की लड़ाई है।
उन्होंने यह भी कहा कि “यदि कर्मचारी आमजन को साथ लें, तब यह आंदोलन केवल वेतन या सुविधाओं की माँग नहीं, बल्कि *’न्याय तक समयबद्ध व सुगम पहुँच’* की साझा माँग बन जाएगा।”
डॉ. मंजु ने अंत में कहा —
“कर्मचारी केवल आंदोलन करें यह पर्याप्त नहीं — उन्हें जनविश्वास जीतना होगा। न्यायिक कर्मचारी न्यायिक प्रक्रिया की रीढ़ हैं, और उन्हें जनसरोकारों से जोड़कर ही सबकी साँझी समस्याओं का स्थायी समाधान निकाला जा सकता है।”